बस्ती नगर पालिका क्षेत्र के पटरी ब्यापारियों को भी इंसानी जिंदगी जीने का हक


समाज सेवी बबिता शुक्ल ने बस्ती नगर पालिका में अतिक्रमण के शिकार हुए पटरी ब्यापारियों के हालात पर चर्चा

बुनियादी सुविधा प्राप्त करना इनका हक है। इनके लिए कोई मुकम्मल व्यवस्था क्यों नहीं हो रही है । इन्हें कीड़े-मकोड़े से भी बदतर जीवन जीने के लिए छोड़ दिया गया।

मरता क्या नहीं करता। ये गरीब लोग जैसे-तैसे नालियों, पूल और पुलियों के नीचे सोते हैं । नसीब बेहतर हुआ तो इनका रिक्शा और ठेला ही चलन्तु घर हो जाता है।  नसीब कुछ बेहतर हुआ तो फिर किसी खाली जमीन पर प्लास्टिक का तंबू लग जाता है।

 फिर खेल शुरू होता है माफिया,दलाल और छूटभइये नेताओं का। चंदा-चुटकी और फिर वही वसूली का धंधा। कौन उजाड़े और कौन बसाये की राजनीति भी खड़ी होने लगती है।

 

बस्ती । समाज सेवी बबिता शुक्ल ने बस्ती नगर पालिका में अतिक्रमण के शिकार हुए पटरी ब्यापारियों के हालात पर चर्चा करते हुए कहा इस ,  इस उजड़ी हुई बस्ती के पटरी ब्यापारियों को भी  इंसानी जिंदगी जीने का हक  हैं।  जरूरत बस्ती बसाने की है। झुग्गियां टूटनी ही चाहिए। बस्तियां पक्के मकान की ही हो। गालियां साफ और चौड़ी हों। नागरिक सुविधा बहाल हों। बात केवल बुलडोजर चला कर नहीं बनेगी। एक लंबी बहस हो। आग्रह मुक्त सर्वस्पर्शी और समावेशी विकास का ढांचा बने। निश्चित समय-सीमा तय हो।


       उन्होने कहा इस चमकती बस्ती  में झुग्गियां का दिखना एक कलंक है। झुग्गियां हमारी आजादी को शर्मसार करती हैं । अंतिम व्यक्ति तक आजादी का असर दिखना चाहिए। उन्होने कहा यह कैसा विकास है आज अचानक नगरपालिका और प्रशासन ने मिलकर गरीबों  की झोपड़ी ही ही नही उजाड़ा इन्हे रोजी रोटी से भी हाथ धोना पड़ा, उन्होने कहा काश नगरपालिका बस्ती और प्रशासन इन्हे बसा कर  उजाड़ा होता इन्हे तकलीफ नही होती आज इनके घर चलाने के लाले नही पड़ते लेकिन ऐ गरीब है उजड़ने में भी खुश है बल्कि जीने के लिए भी पैदा हुए हैं।

उन्होने कहा सम्मानजनक जिंदगी जीने के अवसर की तलाश का नाम ही गरीब यह ठेला झूग्गी पटरी पर  दुकान लगायें है यह भी नगर पालिका अध्यक्षा को सोचना चाहिए !" alt="" aria-hidden="true" />

उन्होने कहा मामला इस 30 प्रतिशत लोगों की उपेक्षा का है। बुनियादी सुविधा प्राप्त करना इनका हक है। इनके लिए कोई मुकम्मल व्यवस्था क्यों नहीं हो रही है । इन्हें कीड़े-मकोड़े से भी बदतर जीवन जीने के लिए छोड़ दिया गया। मरता क्या नहीं करता। ये गरीब लोग जैसे-तैसे नालियों, पूल और पुलियों के नीचे सोते हैं । नसीब बेहतर हुआ तो इनका रिक्शा और ठेला ही चलन्तु घर हो जाता है। और नसीब कुछ बेहतर हुआ तो फिर किसी खाली जमीन पर प्लास्टिक का तंबू लग जाता है। तब फिर खेल शुरू होता है माफिया,दलाल और छूटभइये नेताओं का। चंदा-चुटकी और फिर वही वसूली का धंधा। कौन उजाड़े और कौन बसाये की राजनीति भी खड़ी होने लगती है।


उन्होने कहा बस्ती के लोगों ने जिंदगी झोंककर अपने हिस्से के शहर को बसाया और सजाया। इतने महत्व के लोगों की ऐसी दुर्दशा क्यों? ये क्यों धूप में तप रहे हैं, बरसात और ठंढ में भींग और ठिठुर रहे हैं? उन्होने कहा शहर, इन गरीबों की जरूरत नही है, बल्कि शहर को ही इनकी जरूरत है। गरीब कभी भी गांव, पुरखों की विरासत , परिजनों और परिवार को छोड़ नहीं आना चाहते हैं।अगर इनकी आजीविका के आधार खेती-किसानी और कुटीर-उद्योग इसी शहरीकरण की सूली पर नही चढ़ाए गए होते तो ये गरीब मजदूर शहर झांकने भी नहीं आते। ये तो बाजार और बजरुआ जैसे शब्द को गाली की तरह ही यूज करते रहे हैं। शहर की ओर भागते लोगों को देखा होगा आपने? क्यों नहीं हम अपना गुनाह कबूल करते कि ये सरकार के  सताए हुए लोग हैं। इनके इस नाजायज दुख के जिम्मेदार सरकार है ?

झुग्गी-झोपड़ी जैसे शब्द जनवादी घराने के शब्द हैं। यहां पलती है बेबसी। जन्म लेते हैं दुख । प्रतिव्यक्ति दुख मापने का कोई इंडेक्स यहां काम नही करता। इन बस्तियों में बासीपन, दारिद्र और दुर्गन्ध हैं। बस्तियां ही वस्त्र हैं जहां नंगे रहा जा सकता है। जार-जार झरोखा और तार-तार होती इनकी इज्जत। चारपाई की भी कई मंजिलें हैं। यहां प्रेम और प्रसव की भी कोई निजता नहीं होती। घिनायी हुई अस्मिता का दुर्गंध। यह कोई वर्ग-संघर्ष नहीं, बस्ती-संघर्ष है। " alt="" aria-hidden="true" />


बता दें बस्ती जनपद में प्रशासन और नगरपालिका के द्वारा अतिक्रमण हटाओ अभियान पिछले कुछ दिनों से चल रहा है ।जिसमें कल कंपनीबाग चौराहे से लेकर पानी टंकी तक का अतिक्रमण हटाया गया।जिसके लिए बुलडोजर और भारी पुलिस बंदोबस्त भी देखने को मिला।


इसी क्रम में आज मालवीय रोड पर अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही की गई जिसमें फौवरा तिराहा से लेकर रौता चौराहा तक का अतिक्रमण हटाने का काम चल रहा है।


कई जगहों पर विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है प्रशासन को जिसको लेकर कुछ लोग धरना प्रदर्शन भी के रहेथे। 


आज सांसद हरीश दुवेदी ने सभी अतिक्रमण से परेशान लोगों को विकास भवन प्र  सुना और लोगो को आश्वासन दिया कि किसी के साथ न्याय नहीं किया जाएगा।ठेला लगाने वालो को परेशान नहीं किया जाएगा लेकिन कोई स्थाई निर्माण ना करे।


कुछ लोगों की शिकायत है कि सिर्फ गरीब फूटपाथ विक्रेताओं पर कार्यवाही हो रही है और  प्रशसन बड़ी दुकानों के अतिक्रमण प्र कार्यवाही नहीं कर रहा। मालूम हो कि पक्के बाज़ार पर अभी तक अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही नहीं की गई है।